जब मन में एक इज़्तेराब था,
फलक में डूबता आफताब था,
खौफ है इनायत दिखाने में,
जैसे ग़म की बोत्तलें मैखाने में
भले ही दिल कब्र में लेटा है,
हम जानते है कैसे ये समेटा है,
बस ये मसला अब सुलटाना है,
भले ही ये दिल का एक और बहाना है,
अब हिज्र से खौफ नहीं खाते है,
बस इस इब्तिदा से घबराते है,
नदामत से पहले क़ुरबत बढ़ानी है,
इस ज़हनसीब की नयी कहानी है
इस पेड़ पर नयी शाख आयी है,
मुझ मुन्तज़िर के लिए ख़ल्क़ बनायीं है,
अब उस शाख पर फ़ना होना है,
हम उनपर शिकस्त खिलौना है
इस कायनात ने मोजज़ा किया है,
मेरा महरूम जो मुझे दिया है,
इसके नूर पर कुर्बान हो जायेंगे,
तभी ये ख़्वाबीदा सुकून पाएंगे